
Ashawini Mudra 2
अश्वनी मुद्रा:-
अश्विनी मुद्रा के बारे में
बताते हुए लाइफ गुरु सुरक्षित कहते हैं कि जैसे अश्व (घोड़ा) लीध करने के बाद अपने गुदाद्वार को बार-बार सिकोड़ता ढीला करता है, उसी प्रकार गुदाद्वार को सिकोड़ना और फैलाने की क्रिया को ही अश्विनी मुद्रा कहते हैं।
घोड़े में इतनी शक्ति और फुर्ती का रहस्य यही मुद्रा है।
इसलिए इंजन की ताकत अश्व शक्ति (हॉर्स पावर) से मापी जाती है।
यह ऐंटी ग्रेविटी अभ्यास है।
इससे शरीर को चलाने वाली ऊर्जा बढ़ती है। सभी अंगों को बल मिलता है, शरीर की ताकत बढ़ती है, नपुंसकता दूर होकर पौरुष शक्ति बढ़ने लगती है।
हृदय को बल देने वाली यह क्रिया हर्निया, मूत्र दोष, गुदा सम्बन्धी रोग, बवासीर, कब्ज व स्त्री रोगों में बड़ी उपयोगी है।
इसके अभ्यास से मूलाधार चक्र में स्थित कुण्डलिनी शक्ति जागने लगती और हमें लम्बे समय तक युवा बनाए रखती है।
अश्वनी मुद्रा का आध्यात्मिक फायदा
ऐसा माना जाता है कि अश्वनी मुद्रा को नियमित करने से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। इसमें मूलाधार केंद्र जागृत होता है व कुंडलिनी शक्ति मूलाधार केंद्र से ऊपर की ओर बढ़ती है। इसी कारण से अश्विनी मुद्रा करने से व्यक्ति में आध्यात्म की ओर रूचि बढ़ती है।
अश्विनी मुद्रा करते समय बरती जाने वाली सावधानियां
- यदि अश्विनी मुद्रा करते समय आपको मल या मूत्र का का अहसान हो तो उसे रोकना नहीं चाहिए।
- इस मुद्रा को करने से पहले आप मल मूत्र का त्याग करें और जब आपका पेट खाली हो जाये तो ही इसका अभ्यास करें।
- यदि आपको किसी प्रकार का गुदा मार्ग में कोई रोग हो तो इसके लिए योग्य गुरु की देखरेख में ही इसका अभ्यास करें ।