
sahajoli Mudra
सहजोली मुद्रा:-
सहजोलीश्चामरोलीर्वज्रोल्या एव भेदत: ।
जले सुभस्म निक्षिप्य दग्धगोमयसम्भवम् ।। 92 ।।
वज्रोली मैथुनादूर्ध्वं स्त्रीपुंसो: स्वाङ्गले पनम् ।
आसीनयो: सुखेनैव मुक्तव्यापारयो: क्षणात् ।। 93 ।।
भावार्थ :- सहजोली व अमरोली वज्रोली मुद्रा के ही दो प्रकार हैं । इनमें सहजोली क्रिया को बताते हुए कहा है कि योगी साधक अथवा साधिका दोनों ही वज्रोली क्रिया करने के बाद जले हुए गोबर की उत्तम भस्म ( राख ) को पानी में मिलाकर अपने- अपने जननेन्द्रियों ( लिंग व योनि ) अंगों पर लेप करके लगाएं । यह क्रिया सहजोली कहलाती है । इसको करने के बाद साधक को कुछ समय तक सुखपूर्वक बैठना चाहिए ।
सहजोलिरियं प्रोक्ता श्रद्धेया योगिभि: सदा ।
अयं शुभकरो योगो योगिमुक्तिविमुक्तिद: ।। 94 ।।
भावार्थ :- सभी योग अभ्यासों में सहजोली क्रिया को सदैव अत्यन्त शुभकारी अर्थात् अच्छा फल प्रदान करने वाली कहा गया है । यह साधकों को मुक्ति व विशिष्ट मुक्ति प्रदान करवाने वाली होती है ।
अयं योग: पुण्यवतां धीराणां तत्त्वदर्शिनाम् ।
निर्मत्सराणां सिध्येत न तु मत्सरशालिनाम् ।। 95 ।।
भावार्थ :- इस सहजोली क्रिया का अभ्यास पुण्य अर्थात् धार्मिक, धैर्य से युक्त व तत्त्वज्ञानियों अर्थात् यथार्थज्ञान रखने वाले, ईर्ष्या रहित और तृप्त अथवा शान्त ( जो किसी वस्तु को पाने की इच्छा न रखते हों ) साधकों को ही सिद्ध होता है ।