गौदान लाभ

दान या परोपकार एक ऐसा कर्म है जिसका महत्व सभी धर्मों में समान रूप से स्वीकार किया गया है। हिंदू धर्म में तो दान को सबसे बड़ा पुण्य कर्म माना गया है। जरूरतमंद को दान देने से उसका शुभ आशीर्वाद तो प्राप्त होता ही है, ऐसा करने से कुंडली के समस्त ग्रह दोष भी शांत होते हैं। वैदिक ज्योतिष में तो दान के संबंध में विस्तार से बताया गया है कि आप अपनी जन्मकुंडली के ग्रहों की स्थिति के अनुसार दान करेंगे तो अत्यंत प्रभावी होगा। खैर, दान तो कई वस्तुओं के किए जा सकते हैं, लेकिन समस्त प्रकार के दान में गौदान को सबसे बड़ा दान कहा गया है। पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष में गौदान का सबसे बड़ा महत्व है। गौदान हर प्रकार से कल्याणकारी होता है।
जी हां, यदि आप गाय का दान करते हैं तो इससे बड़ा कोई दूसरा पुण्य कार्य नहीं। अधिकांश लोग अपने परिजनों की मृत्यु के बाद उनके नाम से गाय का दान करते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि मृतात्मा जब स्वर्ग या नर्क की यात्रा कर रही होती है तो उसके रास्ते में पड़ने वाली वैतरणी नदी को गाय की पूंछ पकड़कर ही पार करना होता है। जो गौदान करता है उस मृतात्मा को वही गाय वैतरणी पार करवाती है।
शास्त्रों का कथन है कि सभी मनुष्यों को जीवन में एक बार गौदान अवश्य करना चाहिए।
गौदान वैसे तो वर्ष में कभी भी किया जा सकता है, लेकिन कुछ विशेष दिनों में गाय का दान किया जाए तो अति शुभफलदायी होता है। गरुड़ पुराण के अनुसार गाय दान करने का सबसे उत्तम समय पितृपक्ष कहा गया है। पितृपक्ष में दो प्रकार से गाय का दान किया जा सकता है। एक तो अपने मृत परिजनों के नाम से और दूसरा स्वयं। यदि आप अपने पितरों की प्रसन्न्ता चाहते हैं, उनका शुभ आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो पितरों के नाम से गाय का दान पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए। यदि आप स्वयं गाय का दान करना चाहते हैं तो उसके लिए भी पितृपक्ष का समय सबसे अच्छा कहा गया है।

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