गौ सेवा गौ दान के महत्व

पद्म पुराण में कहा गया है 

गौ को अपने प्राणों के समान समझे, उसके शरीर को अपने ही शरीर के तुल्य माने, जो गौ के शरीर में सफ़ेद और रंग-बिरंगी रचना करके, काजल, पुष्प, और तेल के द्वारा उनकी पूजा करते है, वह अक्षय स्वर्ग का सुख भोगते है.
जो प्रतिदिन दूसरे की गाय को मुठ्ठीभर घास देता है, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है .
गौ सब कार्यों में उदार तथा समस्त गुणों की खान है .गौ की प्रत्येक वस्तु पावन है, गौ का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, इन्हे “पंचगव्य” कहते है इनका पान कर लेने से शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता .जिसे गाय का दूध दही खाने नहीं मिलता उसका शरीर मल के समान है.
जो गौ की एक बार प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है वह सबी पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है
१. सीगों में भगवान श्री शंकर और श्रीविष्णु सदा विराजमान रहते है.
२. गौ के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में महादेवजी रहते है .
३. सीगों के अग्र भाग में इंद्र, दोनों कानो में अश्र्वि़नी कुमार, नेत्रो मे चंद्रमा और सूर्य, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती देवी का वास होता है .
४. अपान (गुदा)में सम्पूर्ण तीर्थ, मूत्र स्थान में गंगा जी, रोमकूपो में ऋषि, मुख और प्रष्ठ भाग में यमराज का वास होता है .
५. दक्षिण पार्श्र्व में वरुण और कुबेर, वाम पार्श्र्व में तेजस्वी और महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्र भाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएँ वास करती है .
६. गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में पार्वती, चरणों के अग्र भाग में आकाशचारी देवता वास करते है .
७. रँभाने की आवाज में प्रजापति और थनो में भरे हुए चारो समुद्र निवास करते है .
जो प्रतिदिन स्नान करके गौ का स्पर्श करता है और उसके खुरों से उडाई हुई धुल को सिर पर धारण करता है वह मानो सारे तीर्थो के जल में स्नान कर लेता है, और सब पापों से छुट जाता है.
दान का महत्त्व –
सफ़ेद गौ दान करने से, मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है. धुएं के समान रंग वाली गौ स्वर्ग प्रदान करने वाली होती है.
कपिल गौ का दान अक्षय फल देने वाला है, कृष्ण गौ का दान देकर मनुष्य कभी कष्ट में नहीं पड़ता.
हर दोष का निवारण करती है गाय, पुराणों में वर्णित महत्व वास्तु दोषों का भी निवारण करती है गाय जिस स्थान पर भवन, घर का निर्माण करना हो, यदि वहां पर बछड़े वाली गाय को लाकर बांधा जाए तो वहां संभावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाता है, कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएं नहीं आतीं।
गाय के प्रति भारतीय आस्था को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि गाय सहज रूप से भारतीय जनमानस में रची-बसी है। गोसेवा को एक कर्तव्य के रूप में माना गया है। गाय सृष्टिमातृका कही जाती है। गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिए निवेदन के प्रसंग पुराणों में बहुत प्रसिद्ध हैं।’समरांगणसूत्रधार’- जैसा प्रसिद्ध बृहद वास्तु ग्रंथ गोरूप में पृथ्वी-ब्र्ह्मादि के समागम-संवाद से ही आरंभ होता है। वास्तु ग्रंथ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माण का शुभारंभ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिए, जो सवत्सा (बछड़े वाली) हो। नवजात बछड़े को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही मान्यता वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि ग्रंथों में भी है।
महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है तो उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है-
निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम्। विराजयति तं देशं पापं चास्यापकर्षति।।
यह भी कहा गया है कि जिस घर में गाय की सेवा होती है, वहां पुत्र-पौत्र, धन, विद्या, आदि सुख जो भी चाहिए, मिल जाता है। यही मान्यता अत्रि संहिता में भी आई है। महर्षि अत्रि ने तो यह भी कहा है कि जिस घर में सवत्सा धेनु नहीं है, उसका मंगल-मांगल्य कैसे होगा?
गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। इससे घरों में सर्व बाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। बच्चों में भय नहीं रहता। विष्णु पुराण में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गए तो नंद दंपति ने गाय की पूंछ घुमाकर उनकी नजर उतारी और भय का निवारण किया। सवत्सा गाय के शकुन लेकर यात्रा में जाने से कार्य सिद्ध होता है।

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